क्रेडिट कार्ड बकाया पर 30% से अधिक ब्याज वसूली :bank charged 30% and more for credit card due

भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में क्रेडिट कार्ड बकाया पर 30% से अधिक ब्याज वसूली से संबंधित 16 साल पुराने एक मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। यह फैसला न केवल बैंकिंग क्षेत्र के लिए अहम है, बल्कि क्रेडिट कार्ड धारकों के लिए भी कई सवाल खड़े करता है।

एनसीडीआरसी के फैसले को खारिज किया

सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) के 2008 के फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि क्रेडिट कार्ड बकाया पर 36% से 49% की ब्याज दरें अनुचित व्यापार व्यवहार के अंतर्गत आती हैं। आयोग ने इसे उधारकर्ताओं के शोषण के रूप में देखा था।

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क्या था एनसीडीआरसी NCDRC का फैसला?

एनसीडीआरसी ने अपने 2008 के आदेश में सिटीबैंक, अमेरिकन एक्सप्रेस, एचएसबीसी और स्टैंडर्ड चार्टर्ड जैसे बैंकों को क्रेडिट कार्ड बकाया पर अत्यधिक ब्याज वसूलने पर रोक लगाई थी। आयोग का मानना था कि ये दरें अनुचित व्यापार व्यवहार की श्रेणी में आती हैं और ग्राहकों के लिए हानिकारक हैं।

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

Bank charged 30% and more for credit card due . ऐसा होने पर सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति बोले एम. त्रिवेदी और सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने एनसीडीआरसी के फैसले को “अवैध” करार दिया। कोर्ट ने कहा कि एनसीडीआरसी का यह आदेश भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की शक्तियों और बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 के प्रावधानों के खिलाफ है।

महत्वपूर्ण टिप्पणी

  1. आरबीआई की शक्तियों का सम्मान:
    सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि एनसीडीआरसी के पास बैंकों और क्रेडिट कार्ड धारकों के बीच अनुबंध की शर्तों को तय करने का अधिकार नहीं है। यह अधिकार केवल आरबीआई के पास है।
  2. बैंकिंग अधिनियम के तहत ब्याज दरें:
    बैंकिंग विनियमन अधिनियम के तहत, बैंकों को ब्याज दरें तय करने की स्वतंत्रता दी गई है। ये दरें आरबीआई के दिशा-निर्देशों और बाजार की शर्तों पर आधारित होती हैं।
  3. ब्याज दरों पर नियंत्रण का सवाल:
    कोर्ट ने कहा कि आरबीआई को ब्याज दर पर किसी प्रकार की सीमा लगाने का निर्देश देना संभव नहीं है। बैंकों द्वारा वसूले जाने वाले ब्याज की दरें वित्तीय विवेक और आरबीआई के नियमों से निर्धारित होती हैं।

सुप्रीम कोर्ट की दलीलें

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि:

  • बैंकों ने क्रेडिट कार्ड धारकों को धोखा देने के लिए कोई गलतबयानी नहीं की।
  • अनुबंध की शर्तें दोनों पक्षों की सहमति से तय की गई थीं।
  • एनसीडीआरसी का बैंकों को ब्याज दर सीमित करने का आदेश देना बैंकिंग प्रणाली में हस्तक्षेप करने जैसा है।

आरबीआई का पक्ष

आरबीआई ने कोर्ट में यह दलील दी कि:Bank charged 30% and more for credit card due

  • क्रेडिट कार्ड पर ब्याज दरें वित्तीय बाजार की स्थितियों के आधार पर तय होती हैं।
  • किसी भी बैंक के खिलाफ कार्रवाई करने का कोई आधार नहीं है, क्योंकि सभी ने आरबीआई के दिशा-निर्देशों का पालन किया है।

उपभोक्ता आयोग की सीमाएँ

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग को अनुचित अनुबंधों को रद्द करने का अधिकार है, लेकिन ब्याज दरों को तय करने का अधिकार आरबीआई के पास है।

ग्राहकों के लिए संदेश

यह फैसला स्पष्ट करता है कि क्रेडिट कार्ड धारकों को अनुबंध की शर्तों को समझकर ही इनका उपयोग करना चाहिए। बैंकिंग प्रणाली के तहत, ब्याज दरों का निर्धारण कानूनी रूप से आरबीआई और बैंकिंग संस्थानों के विवेक पर निर्भर है।

क्या करें ग्राहक?

  • समझदारी से क्रेडिट कार्ड का उपयोग करें।
  • भुगतान समय पर करें ताकि ब्याज से बचा जा सके।
  • यदि ब्याज दरें अधिक लगती हैं, तो संबंधित बैंक से चर्चा करें।
  • अनुबंध की शर्तों को ध्यान से पढ़ें।

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला बैंकों को ब्याज दरों को तय करने की स्वतंत्रता देता है और आरबीआई की शक्तियों का सम्मान करता है। हालांकि, ग्राहकों को भी क्रेडिट कार्ड उपयोग में सावधानी बरतने की जरूरत है।


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